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कर्नाटक चुनाव की उठा -पटक

15 मई 2018 को मिले चुनावी नतीजों ने किसी भी पार्टी विशेष को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है। 12 मई 2018 को संपन्न हुए कर्नाटक विधानसभा चुनावों से इस बार चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं ।भाजपा प्रदेश में सबसे बड़ा दल बन कर उभरी है। उसने कुल 104 सीटें जीती हैं। कांग्रेस को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा है। उसने कुल 78 सीटें जीती हैं। वही जनता दल(सेक्युलर) ने कुल 37 सीटें जीती हैं। निर्दलीय विधायकों ने भी 2 सीटें जीती हैं।

कर्नाटक में इस बार कुल 224 विधानसभा सीटों में से 222 सीटों के लिए चुनाव हुआ था । जिसमें किसी भी पार्टी को बहुमत ना मिलने के कारण सियासी पारा चढ़ गया है । कांग्रेस ने सत्ता से बेदखल होने के बावजूद सियासी चाल चलते हुए ,जनता दल (सेक्युलर )को बिना शर्त समर्थन दे दिया है।

जेडी(एस) के प्रमुख एचडी कुमार स्वामी को कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री बनने का न्योता दिया गया है। वह राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा लेकर गए थे ,लेकिन उन से पहले ही भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदुरप्पा ने राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा ठोक दिया है ।

आपको बताते चलें कि संविधान के मुताबिक राज्यपाल अपने विवेक का उपयोग करते हुए बहुमत दल के नेता को सरकार बनाने का न्योता देंगे ।
इसे लेकर संविधान विशेषज्ञों में अलग-अलग राय हैं।

संविधान में लिखित नियमों के अनुसार
” राज्य में राज्यपाल ही मुख्यमंत्री को नियुक्त करेगा इससे वह सरकार बनाने के लिए बहुमत दल के नेता को आमंत्रित करेगा।”

इस आधार पर भाजपा राज्य में सबसे बड़ी पार्टी है। इसलिए राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने का समय दिया हुआ है ।
इस मामले का दूसरा पक्ष यह है कि यह नियम गोवा मणिपुर में लागू नहीं हुआ था। जहां कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनकर उभरी थी । वहां भाजपा ने अल्पमत में रहते हुए भी सरकार बनाने का दावा पेश किया था ।

इसका प्रमुख कारण यह है कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में सारा भार राज्यपाल के कंधों पर होता है, और राज्यपाल तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं । कांग्रेस नेता व प्रवक्ता मनीष तिवारी के अनुसार
“कर्नाटक के तत्कालीन राज्यपाल भाजपा के नेता के तौर पर काम कर रहे हैं।”

लेकिन वह यहां यह बताना भूल गए कि कांग्रेस भी इस से अछूती नहीं रही है । केंद्र में अपने शासन के दौरान उनकी पार्टी ने भी यह खेल खेले हैं।

इन सब के इतर अभी भाजपा द्वारा समर्थन के लिए पिछले दरवाजे से कोशिशें जारी हैं। विभिन्न राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस या फिर जनता दल के कुछ विधायकों को उनकी अंतरात्मा की आवाज सुनाई पड़ जाए ।

इसलिए सूत्रों के मुताबिक सभी कांग्रेस विधायक पंजाब ले जाए जा सकते हैं । जिससे अंतर आत्मा की आवाज उन तक ना पहुंच सके ।यही नीति जेडी(एस) भी अपनाएगी । इस के आसार अधिक लगते हैं।

इन चुनावों ने एक बात राष्ट्रीय स्तर पर और उद्धृत कर दी हैं कि नरेंद्र मोदी की लहर अभी भी बरकरार है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी और उनकी मेहनत की काट किसी भी राजनीतिक दल के पास नहीं है।

विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस बात पर भी खुश हो सकती हैं, कि गुजरात चुनाव से भाजपा की जीत का अंतर चुनाव दर चुनाव धीरे-धीरे घटता भी जा रहा है।

भाजपा को इस बात पर जरूर चिंता होनी चाहिए। इन नतीजों से विपक्ष के ‘फेडरल फ्रंट ‘के शिफुगे को हवा मिल सकती है । हाशिए पर चल रही समस्त विपक्षी पार्टियां 2019 में भाजपा के खिलाफ लामबंद हो सकती हैं । इसकी संभावना 90% से अधिक बढ़ जाती है । हालांकि फेडरल फंड बनना आसान नहीं है ,लेकिन यह नामुमकिन भी नहीं है । रसातल में जा रही पार्टियों के लिए ‘ग़ालिब दिल बहलाने को यह ख्याल भी अच्छा है ‘।

कर्नाटक में सत्ता का ऊंट किस तरह बैठेगा ,यह तो भाजपा की कोशिशों और कांग्रेस तथा जीडीएस की गोलबंदी पर निर्भर करेगा । इन नतीजों ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रीय राजनीति में मोदी का कोई भी विकल्प दूर-दूर तक उपस्थित नहीं है।

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